बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास | बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास, पौराणिक कथाएं और किंवदंतियां | देवों के घर' देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम की कहानी

 

देवों के घर' देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम की कहानी |

बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास | बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास, पौराणिक कथाएं और किंवदंतियां 

बाबा बैद्यनाथ मंदिर

बाबा बैद्यनाथ मंदिर का इतिहास

स्थान: बाबा बैद्यनाथ मंदिर झारखंड राज्य के देवघर जिले में स्थित है। यह मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है और यहाँ भगवान शिव को "बैद्यनाथ" के रूप में पूजा जाता है, जिसका अर्थ है "चिकित्सक" या "वैद्य"।

इतिहास

पौराणिक कथा:

सती की कहानी: बैद्यनाथ मंदिर की कथा महाभारत और पुराणों में वर्णित है। कहा जाता है कि सती, भगवान शिव की पत्नी, अपने पिता दक्ष द्वारा आयोजित यज्ञ में निमंत्रित हुईं। वहाँ दक्ष ने शिव का अपमान किया, जिससे सती दुखी होकर यज्ञ अग्नि में आत्मदाह कर लिया। भगवान शिव उनके शोक में थे और सती के शरीर को लेकर ब्रह्मांड में घूमते रहे।
शिव का तांडव: सती के शरीर को बचाने के लिए भगवान शिव ने तांडव नृत्य किया, जिससे सृष्टि में अराजकता फैल गई। तब भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दिया और उन्हें विभिन्न स्थानों पर फेंक दिया। इनमें से एक टुकड़ा यहाँ देवघर में गिरा, जहाँ बाद में बाबा बैद्यनाथ का मंदिर बना।

बाबा बैद्यनाथ धाम की कहानी: रावण की तपस्या

स्थान: बाबा बैद्यनाथ धाम झारखंड के देवघर में स्थित है, जिसे भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक माना जाता है। यहाँ भगवान शिव को "बैद्यनाथ" के नाम से पूजा जाता है, जिसका अर्थ है "चिकित्सक"।

रावण की कथा

रावण का तप: रावण, जो लंका का राजा था और एक शक्तिशाली दैत्य था, भगवान शिव का परम भक्त था। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। रावण ने बहुत दिनों तक कठिन साधना की, जिससे भगवान शिव ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए।
ज्योतिर्लिंग की प्राप्ति: रावण की तपस्या से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उसे एक ज्योतिर्लिंग प्रदान किया। यह ज्योतिर्लिंग अत्यंत शक्तिशाली था और रावण इसे अपने साथ लंका ले जाने के लिए तैयार था।
लौटते समय की घटना: जब रावण लंका लौटने लगा, तो उसने ज्योतिर्लिंग को अपने सिर पर रख लिया। रास्ते में, जब रावण थक गया, तो उसने एक स्थान पर विश्राम करने का निर्णय लिया। उस समय उसने भगवान शिव का नाम लिया और ज्योतिर्लिंग को वहीं रख दिया। जैसे ही वह सो गया, भगवान शिव ने इस अवसर का लाभ उठाया और ज्योतिर्लिंग को वहीं स्थापित कर दिया।
स्थापना: जब रावण जागा, तो उसने देखा कि ज्योतिर्लिंग वहीं स्थापित है और वह उसे हटा नहीं सकता। इस प्रकार, बाबा बैद्यनाथ का मंदिर बना और यह स्थान रावण की तपस्या से प्रसिद्ध हुआ।

महत्व

भक्ति का प्रतीक: रावण की भक्ति और भगवान शिव के प्रति उसकी श्रद्धा इस कथा का मुख्य बिंदु है, जो दिखाता है कि भक्ति का कोई विशेषण नहीं होता।
उत्सव: यहाँ पर हर साल महाशिवरात्रि और सावन के महीने में बड़े धूमधाम से उत्सव मनाए जाते हैं, जहाँ लाखों श्रद्धालु आते हैं।

मंदिर का निर्माण:

वर्तमान मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में राजा मनसिंह द्वारा किया गया। मंदिर की स्थापत्य कला अद्वितीय है, जिसमें जटिल नक्काशी और अद्भुत वास्तुकला शामिल है।

किंवदंतियाँ

किंवदंती: एक किंवदंती के अनुसार, जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया, तो भगवान शिव ने उन्हें एक ज्योतिर्लिंग प्रदान किया। रावण ने इस ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने का प्रयास किया, लेकिन途中 में ही वह अस्वस्थ हो गए। उस समय भगवान शिव ने रावण को एक चिकित्सा दी और इस प्रकार वे बैद्यनाथ के रूप में प्रकट हुए।
साल की पूजा: यहाँ की एक और मान्यता है कि भक्त जब यहाँ आते हैं, तो वे विशेष रूप से साल वृक्ष के नीचे पूजा करते हैं। भक्तों का मानना है कि इस वृक्ष की पूजा करने से सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं।

मंदिर की विशेषताएँ

ज्योतिर्लिंग: यहाँ भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है, जो भक्तों द्वारा विशेष पूजा और अनुष्ठान के साथ पूजित होता है।
उत्सव: महाशिवरात्रि और सावन के महीने में यहाँ बड़े उत्सव आयोजित होते हैं, जिसमें लाखों भक्त शामिल होते हैं।
पवित्रता: बाबा बैद्यनाथ के जल का विशेष महत्व है। इसे पवित्र मानते हुए भक्त इसका सेवन करते हैं।

निष्कर्ष

बाबा बैद्यनाथ मंदिर एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है, जहाँ शिवभक्तों की श्रद्धा और भक्ति का अद्वितीय उदाहरण मिलता है। इसकी पौराणिक कहानियाँ, किंवदंतियाँ और अद्भुत स्थापत्य कला इसे विशेष बनाती हैं। यहाँ आकर भक्त केवल भगवान शिव की पूजा नहीं करते, बल्कि एक अद्वितीय आध्यात्मिक अनुभव भी प्राप्त करते हैं।

बाबा बैद्यनाथ धाम जाने के लिए मार्गदर्शन

स्थान: बाबा बैद्यनाथ धाम झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग किया जा सकता है।

1. वायु मार्ग (Air)

नजदीकी एयरपोर्ट:
झारखंड एयरपोर्ट: देवघर में एक छोटा एयरपोर्ट है, लेकिन बड़े एयरपोर्ट जैसे रांची एयरपोर्ट (लगभग 270 किमी) का भी उपयोग कर सकते हैं।
यात्रा: एयरपोर्ट से टैक्सी या कैब लेकर देवघर जा सकते हैं।

2. रेल मार्ग (Train)

नजदीकी रेलवे स्टेशन:
देवघर रेलवे स्टेशन: यहाँ पर कई ट्रेनें रुकती हैं, जो प्रमुख शहरों से जुड़ी हुई हैं।
यात्रा: स्टेशन से टैक्सी, ऑटो या बस लेकर मंदिर तक पहुँच सकते हैं।

3. सड़क मार्ग (Road)

बस सेवा:
झारखंड राज्य परिवहन की बसें रांची, पटना, कोलकाता और अन्य प्रमुख शहरों से देवघर के लिए चलती हैं।
स्वयं की गाड़ी:मार्ग: NH-114 का उपयोग कर सकते हैं। रांची से देवघर की दूरी लगभग 270 किलोमीटर है।
यात्रा का समय: लगभग 5-6 घंटे।

4. स्थानीय परिवहन

टैक्सी/ऑटो: देवघर में पहुँचने के बाद, आप स्थानीय टैक्सी या ऑटो रिक्शा का उपयोग कर सकते हैं।

यात्रा की तैयारी

समय: महाशिवरात्रि और सावन में यहाँ भीड़ अधिक होती है, इसलिए पहले से यात्रा की योजना बनाना बेहतर रहेगा।
सुविधाएँ: मंदिर परिसर में भोजन और विश्राम की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, लेकिन आप कुछ नाश्ता और पानी अपने साथ ले जाना चाहें।

निष्कर्ष

बाबा बैद्यनाथ धाम एक अद्भुत धार्मिक स्थल है। यहाँ पहुँचने के लिए उपरोक्त मार्गदर्शन का पालन करें और भगवान शिव की आराधना का अनुभव करें!



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